Monday, 9 March 2020

होली का वास्तविक स्वरूप

🕉🙏 ओ३म् सादर नमस्ते जी 🕉🙏
🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🌷🍃

दिनांक  - - ०९ मार्च २०२०
दिन  - - सोमवार
तिथि  - - पूर्णिमा
नक्षत्र  - - पूर्वाफाल्गुनी
माह  - - फाल्गुन
ऋतु  - - बंसत
सूर्य  - - उत्तरायण
सृष्टि संवत  - - १,९६,०८,५३,१२०
कलयुगाब्द  - - ५१२०
विक्रम संवत  - - २०७६
शक संवत  - - १९४१
दयानंदाब्द  - - १९६

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🔥 ज्ञानमयी अमृतवाणी 🔥
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🔥होली का वास्तविक स्वरूप 🔥
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      🌷इस पर्व का प्राचीनतम नाम वासन्ती नव सस्येष्टि है अर्थात् बसन्त ऋतु के नये अनाजों से किया हुआ यज्ञ, परन्तु होली होलक का अपभ्रंश है।

यथा–
तृणाग्निं भ्रष्टार्थ पक्वशमी धान्य होलक: (शब्द कल्पद्रुम कोष) अर्धपक्वशमी धान्यैस्तृण भ्रष्टैश्च होलक: होलकोऽल्पानिलो मेद: कफ दोष श्रमापह। (भाव प्रकाश)

     अर्थात् ―तिनके की अग्नि में भुने हुए (अधपके) शमो-धान्य (फली वाले अन्न) को होलक कहते हैं। यह होलक वात-पित्त-कफ तथा श्रम के दोषों का शमन करता है।

    (ब) होलिका ―किसी भी अनाज के ऊपरी पर्त को होलिका कहते हैं-जैसे-चने का पट पर (पर्त) मटर का पट पर (पर्त), गेहूँ, जौ का गिद्दी से ऊपर वाला पर्त। इसी प्रकार चना, मटर, गेहूँ, जौ की गिदी को प्रह्लाद कहते हैं। होलिका को माता इसलिए कहते है कि वह चनादि का निर्माण करती (माता निर्माता भवति) यदि यह पर्त पर (होलिका) न हो तो चना, मटर रुपी प्रह्लाद का जन्म नहीं हो सकता। जब चना, मटर, गेहूँ व जौ भुनते हैं तो वह पट पर या गेहूँ, जौ की ऊपरी खोल पहले जलता है, इस प्रकार प्रह्लाद बच जाता है। उस समय प्रसन्नता से जय घोष करते हैं कि होलिका माता की जय अर्थात् होलिका रुपी पट पर (पर्त) ने अपने को देकर प्रह्लाद (चना-मटर) को बचा लिया।

     (स) अधजले अन्न को होलक कहते हैं। इसी कारण इस पर्व का नाम  "होलिकोत्सव" है और बसन्त ऋतुओं में नये अन्न से यज्ञ (येष्ट) करते हैं। इसलिए इस पर्व का नाम  "वासन्ती नव सस्येष्टि"  है। यथा―वासन्तो=वसन्त ऋतु। नव=नये। येष्टि=यज्ञ। इसका दूसरा नाम नव सम्वतसर है। मानव सृष्टि के आदि से आर्यों की यह परम्परा रही है कि वह नवान्न को सर्वप्रथम अग्निदेव पितरों को समर्पित करते थे। तत्पश्चात् स्वयं भोग करते थे। हमारा कृषि वर्ग दो भागों में बँटा है―(१) वैशाखी, (२) कार्तिकी। इसी को क्रमश: वासन्ती और शारदीय एवं रबी और खरीफ की फसल कहते हैं। फाल्गुन पूर्णमासी वासन्ती फसल का आरम्भ है। अब तक चना, मटर, अरहर व जौ आदि अनेक नवान्न पक चुके होते हैं। अत: परम्परानुसार पितरों देवों को समर्पित करें, कैसे सम्भव है। तो कहा गया है–
अग्निवै देवानाम मुखं अर्थात् अग्नि देवों–पितरों का मुख है जो अन्नादि शाकल्यादि आग में डाला जायेगा। वह सूक्ष्म होकर पितरों देवों को प्राप्त होगा।

     हमारे यहाँ आर्यों में चातुर्य्यमास यज्ञ की परम्परा है। वेदज्ञों ने चातुर्य्यमास यज्ञ को वर्ष में तीन समय निश्चित किये हैं―(१) आषाढ़ मास, (२) कार्तिक मास (दीपावली) (३) फाल्गुन मास (होली) यथा फाल्गुन्या पौर्णामास्यां चातुर्मास्यानि प्रयुञ्जीत मुखं वा एतत सम्वत् सरस्य यत् फाल्गुनी पौर्णमासी आषाढ़ी पौर्णमासी अर्थात् फाल्गुनी पौर्णमासी, आषाढ़ी पौर्णमासी और कार्तिकी पौर्णमासी को जो यज्ञ किये जाते हैं वे चातुर्यमास कहे जाते हैं आग्रहाण या नव संस्येष्टि।

     समीक्षा―आप प्रतिवर्ष होली जलाते हो। उसमें आखत डालते हो जो आखत हैं–वे अक्षत का अपभ्रंश रुप हैं, अक्षत चावलों को कहते हैं और अवधि भाषा में आखत को आहुति कहते हैं। कुछ भी हो चाहे आहुति हो, चाहे चावल हों, यह सब यज्ञ की प्रक्रिया है। आप जो परिक्रमा देते हैं यह भी यज्ञ की प्रक्रिया है। क्योंकि आहुति या परिक्रमा सब यज्ञ की प्रक्रिया है, सब यज्ञ में ही होती है। आपकी इस प्रक्रिया से सिद्ध हुआ कि यहाँ पर प्रतिवर्ष सामूहिक यज्ञ की परम्परा रही होगी इस प्रकार चारों वर्ण परस्पर मिलकर इस होली रुपी विशाल यज्ञ को सम्पन्न करते थे। आप जो गुलरियाँ बनाकर अपने-अपने घरों में होली से अग्नि लेकर उन्हें जलाते हो। यह प्रक्रिया छोटे-छोटे हवनों की है। सामूहिक बड़े यज्ञ से अग्नि ले जाकर अपने-अपने घरों में हवन करते थे। बाहरी वायु शुद्धि के लिए विशाल सामूहिक यज्ञ होते थे और घर की वायु शुद्धि के लिए छोटे-छोटे हवन करते थे दूसरा कारण यह भी था।

     ऋतु सन्धिषु रोगा जायन्ते ―अर्थात् ऋतुओं के मिलने पर रोग उत्पन्न होते हैं, उनके निवारण के लिए यह यज्ञ किये जाते थे। यह होली शिशिर और बसन्त ऋतु का योग है। रोग निवारण के लिए यज्ञ ही सर्वोत्तम साधन है। अब होली प्राचीनतम वैदिक परम्परा के आधार पर समझ गये होंगे कि होली नवान्न वर्ष का प्रतीक है।

    पौराणिक मत में कथा इस प्रकार है―होलिका हिरण्यकश्यपु नाम के राक्षस की बहिन थी। उसे यह वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी। हिरण्यकश्यपु का प्रह्लाद नाम का आस्तिक पुत्र विष्णु की पूजा करता था। वह उसको कहता था कि तू विष्णु को न पूजकर मेरी पूजा किया कर। जब वह नहीं माना तो हिरण्यकश्यपु ने होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को आग में लेकर बैठे। वह प्रह्लाद को आग में गोद में लेकर बैठ गई, होलिका जल गई और प्रह्लाद बच गया। होलिका की स्मृति में होली का त्यौहार मनाया जाता है l जो नितांत मिथ्या हैं।।

    होली उत्सव यज्ञ का प्रतीक है। स्वयं से पहले जड़ और चेतन देवों को आहुति देने का पर्व हैं।  आईये इसके वास्तविक स्वरुप को समझ कर इस सांस्कृतिक त्योहार को बनाये। होलिका दहन रूपी यज्ञ में यज्ञ परम्परा का पालन करते हुए शुद्ध सामग्री, तिल, मुंग, जड़ी बूटी आदि का प्रयोग कीजिये।

  आप सभी को होली उत्सव की हार्दिक शुभकामनायें।

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🕉🙏 आज का वेद मंत्र 🕉🙏

🌷ओ३म् अग्न आ याहि वीतये गृणानो हव्यदातये । नि होता सत्सि बहिर्षि ।(सामवेद पूर्वाचिंक १|१ )

💐 अर्थ:- प्रकाशस्वरूप परमात्मन! चित्त की एकाग्रता के लिए,  जीवन में गति देने के लिए,  हमारे सब कार्यो में सदगुण देने तथा सुपथ प्रदान करने के लिए आप आओ।यज्ञादि शुभ कर्मों द्वारा सदा हमारे ह्रदय में विराजो, हम सदा आपको स्मरण करें ।

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 🕉 आज का संकल्प पाठ 🕉
                 
🌷ओं तत्सद्।श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे ,{एक वृन्दषण्णनवतिकोट्याष्टलक्षत्रिपञ्चासत्सहस्र विंश अधिक शततमे मानव सृष्टिसम्वत्सरे}, १,९६,०८,५३,१२० सृष्टि सम्वतसरे,२०७६ {षटसप्ततति: उत्तर द्वी सहस्रे वैक्रमाब्दे }, शाके १९४१,  १९६( षष्ठ  नवती उत्तर शततमे) दयानन्दाब्दे , रवि उत्तरायणे, बंसत ऋतौ, फाल्गुन  मासे, शुक्ल पक्षे, पूर्णिमा तिथि, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्रे, सोमवासरे, तदनुसार ०९ मार्च  २०२०,
जम्बूद्वीपे,  भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्  गते .........प्रदेशे ,........जनपदे.. ..नगरे......गोत्रोत्पन्नः....श्रीमान.(पितामह)....(पिता..).पुत्रस्य... अहम् .'(स्वयं का नाम)....अद्य  प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ ,आत्मकल्याणार्थ ,रोग -शोक निवारणार्थ च यज्ञ कर्म कर्णाय भवन्तम् वृणे।

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🕉🙏 ज्ञान रहित भक्ति अंधविश्वास है ।
🕉🙏 भक्ति रहित ज्ञान नास्तिकता है ।

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🌷🍃🌷🍃 ओ३म् सुदिनम् 🌷🍃🌷🍃 ओ३म् सुप्रभातम् 🌷🍃🌷🍃 ओ३म् सर्वेभ्यो नमः

💐🙏💐🙏 कृण्वन्तोविश्मार्यम 💐🙏💐🙏 जय आर्यावर्त 💐🙏💐🙏 जय भारत

Friday, 28 September 2018

Portable Desktop Computer


Units of Computer Memory


Lan Man Wan Network

LAN जिसका फुल फॉर्म है लोकल एरिया नेटवर्क (Local Area Network) जिसका यूज़ हम लोकल एरिया में जितने भी नेटवर्क होते है उन्हे कनेक्ट करने के लिए यूज़ करते है इसके बाद आता है Man नेटवर्क जिसका फुल फॉर्म होता है मेट्रोपोलीटन एरिया नेटवर्क (Metropolitan area network) जिसका यूज़ एक सिटी (city) नेटवर्क को कनेक्ट करने के लिए यूज़ किया जाता है फिर इसके बाद आता है Wan जिसे हम कहते है वाइड एरिया नेटवर्क (Wide Area Network) जिसे यूज़ एक देश को कनेक्ट करने के लिए प्रयोग किया जाता है


What Is Router ?

Routers छोटे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस होते हैं जो वायर्ड या वायरलेस कनेक्शन के माध्यम से कई कंप्यूटर नेटवर्क को कनेक्‍ट करते हैं।
Routers डिवाइस में सॉफ़्टवेयर होता हैं जो किसी विशेष ट्रांसमिशन के लिए, उपलब्ध paths का सर्वोत्तम path निर्धारित करने में सहायता करते हैं।
आसन भाषा में Router एक कंप्‍यूटर नेटवर्क को दूसरे कंप्‍यूटर नेटवर्क से कनेक्‍ट करता हैं या एक कंप्‍यूटर नेटवर्क को इंटरनेट से कनेक्‍ट करता हैं।
इसलिए Route कि पोजिशन आपके मॉडेम और कंप्यूटर के बीच होती है।
नेटवर्क को इंटरनेट से कनेक्‍ट करने के लिए Route मॉडेम से कनेक्‍ट होना चाहिए। इसलिए, अधिकांश राउटर में एक विशिष्ट ईथरनेट पोर्ट होता है जिसे केबल या डीएसएल मॉडेम के ईथरनेट पोर्ट से कनेक्ट करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

Friday, 13 January 2017

मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं!

*मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं!*

🙏आप को और आप के पूरे परिवार को हार्दिक बधाई , सब का जीवन मंगलमय रहे , सुखः , शान्ति , समृद्धि बनी रहे, जय हिंद , जय भारत 🇮🇳


मकर संक्रांति हिंदू धर्म का प्रमुख त्यौहार है। यह पर्व पूरे भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है।  पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तब इस संक्रांति को मनाया जाता है। यह त्यौहार  अधिकतर जनवरी माह की चौदह तारीख को मनाया जाता है। कभी-कभी यह त्यौहार बारह, तेरह या पंद्रह को भी हो सकता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि सूर्य कब धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। इस दिन से सूर्य की उत्तरायण गति आरंभ होती है और इसी कारण इसको उत्तरायणी भी कहते हैं।


मकर संक्रांति से कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं।

कहा जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाया करते हैं। शनिदेव चूंकि मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है।

मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा उनसे मिली थीं। यह भी कहा जाता है कि गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थी। इसलिए मकर संक्रांति पर गंगा सागर में मेला लगता है।

महाभारत काल के महान योद्धा भीष्म पितामह ने भी अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था।

इस त्यौहार को अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है। मकर संक्रांति को तमिलनाडु में पोंगल के रूप में तो आंध्रप्रदेश, कर्नाटक व केरला में यह पर्व केवल संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है।

इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी व सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इस प्रकार यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।

यशोदा जी ने जब कृष्ण जन्म के लिए व्रत किया था तब सूर्य देवता उत्तरायण काल में पदार्पण कर रहे थे और उस दिन मकर संक्रांति थी। कहा जाता है तभी से मकर संक्रांति व्रत का प्रचलन हुआ।

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